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राम अनुज धर द्विवेदी की रिपोर्ट

घोरावल(सोनभद्र)। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सोमवार को सिद्धेश्वर महादेव सेवा संस्थान महुआंव पाण्डेय की सदस्य व अन्य महिलाओं द्वारा विधि विधान से पूजन कर पर्व मनाया। संस्थान की अध्यक्ष नीलल द्विवेदी ने कहा कि सोमवार चंद्र देवता कों समर्पित दिन है। भगवान चंद्र को मन का कारक माना जाता है अतः इस दिन अमावस्या पड़ने का अर्थ है की यह दिन मन सम्बन्धित दोषो को दूर करने के लिए उत्तम है। वहीं आचार्य रजनीश पाण्डेय ने बताया कि हमारे शास्त्रो में चंद्रमा को ही दैहिक,दैविक और भौतिक कष्टो का कारक माना जाता है। अतः यह पूरे वर्ष में एक या दो बार ही पड़ने वाले पर्व का बहुत अधिक महत्त्व माना जाता है। विवाहित स्त्रियों के द्वारा इस दिन पतियों की दीर्घ आयु के लिये व्रत का विधान है। सोमवती अमावस्या कलयुग के कल्याणकारी पर्वो में से एक है,लेकिन सोमवती अमावस्या को अन्य अमावस्याओं से अधिक पुण्य कारक मानने के पीछे भी पौराणिक एवं शास्त्रीय कारण है। सोमवार को भगवन शिव एवं चंद्र का दिन माना जाता है। सोम यानि चन्द्रमा अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा यानि सोमांश या अमृतांश सीधे-सीधे पृथ्वी पर पड़ता है। शास्त्रो के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन चन्द्रमा का अमृतांश पृथ्वी पर सबसे अधिक पड़ता है।

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श्री पाण्डेय ने आगे कहा कि अमावस्या अमा और वस्या दो शब्दों से मिलकर बना है। शिव पुराण में इस संधि विच्छेद को भगवान् शिव ने माँ पार्वती को समझाया था क्योंकि सोम को अमृत भी कहा जाता है। अमा का अर्थ है एकत्रित करना और वास को वस्या कहा गया है यानि जिसमे सभी वास करते हो, वह अति पवित्र अमावस्या कहलाती है। यह भी कहा जाता है की सोमवती अमावस्या में भक्तो को अमृत की प्राप्ति होती है। निर्णय सिंधु व्यास के वचनानुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान का पूण्य मिलता है। शास्त्रो के अनुसार पीपल की परिक्रमा करने में से ,सेवा पूजा करने से, पीपल की छाया से,स्पर्श करने से समस्त पापो का नाश,अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है व आयु में वृद्धि होती है। पीपल के पूजन में दूध, दही, मिठाई,फल, फूल,जनेऊ, का जोड़ा चढाने से और घी का दीप दिखाने से भक्तो की सभी मनोकामनाये पूरी होती है। कहते है कि पीपल के मूल में भगवान् विष्णु तने में शिव जी तथा अगर भाग में ब्रह्मा जी का निवास है इसलिए सोमवार को यदि अमावस्या हो तो पीपल के पूजन से अक्षय पूण्य लाभ तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के पेड़ की दूध,जल, पुष्प, अक्षत,चन्दन आदि से पूजा और पीपल के चारो और 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है। हर परिक्रमा में कोई भी मिठाई या फल चढाने से विशेष लाभ होता है। ये सभी 108 फल या मिठाई परिक्रमा के बाद ब्राह्मण या निर्धन को दान किया जाता है। इस प्रक्रिया को कम से कम 3 सोमवती तक करने से सभी समस्याओ से मुक्ति मिलती है। इस प्रदक्षिणा से पितृ दोष का भी निश्चित समाधान होता है। इस दिन जो भी स्त्री तुलसी या माँ पार्वती पर सिंदूर चढ़ा कर अपनी मांग में लगाती है वह अखंड सौभाग्यवती बनी रहती है। जिन जातको की जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष है। वे लोग यदि सोमवती अमावस्या पर चांदी के बने नाग-नागिन की विधिवत पूजा कर उन्हें नदी में प्रवाहित करे,शिव जी पर कच्चा दूध चढाये,पीपल पर मीठा जल चढ़ा कर उसकी परिक्रमा करें,धुप दीप दिखाए,ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करे तो निश्चित ही काल सर्प दोष की शांति होती है। इस दिन जो लोग व्यवसाय में परेशानी उठा रहे है, वे पीपल के नीचे तिल के तेल का दिया जलाना चाहिए। इस दिन अपने पितरों के नाम से पीपल का वृक्ष लगाने से जातक को सुख, सौभग्य,पुत्र की प्राप्ति होती है,एव पारिवारिक कलेश दूर होते है। इस दिन पवित्र नदियो में स्नान, ब्राह्मण भोज, गौदान, अन्नदान, वस्त्र, स्वर्ण आदि दान का विशेष महत्त्व माना गया है इस दिन गंगा स्नान का भी विशिष्ट महत्त्व है। इस अवसर पर महुआंव पाण्डेय गांव की तमाम महिलाएं मौजूद रहीं।

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कार्यालय संपर्क सूत्र :

  डॉ. परमेश्वर दयाल श्रीवास्तव,
  9621139800



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